Sadhana Shahi

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काश! मैं भविष्य देख पाता (कहानी )प्रतियोगिता हेतु-22-Feb-2024

दिनांक- 22, 02, 2024 दिवस -गुरुवार प्रदत्त विषय- काश! मैं भविष्य देख पाता प्रतियोगिता हेतु

इच्छाएंँ एक ऐसा जंजाल हैं जिनके पीछे मनुष्य आजीवन भागता रहता है। कुछ इच्छाएँ तो ऐसी होती हैं जिनकी पूर्ति उसके जीवन में हो जाती है, किंतु कुछ इच्छाओं की पूर्ति जीवन पर्यंत नहीं होती।

क्योंकि एक इच्छा की पूर्ति होती है तो दूसरी इच्छा बलवती हो जाती है। फलस्वरुप एक के बाद एक इच्छाओं का क्रम चलता ही रहता है।

क्योंकि, आज मनुष्य अति महत्वाकांक्षी हो गया है। वह जानता है कि उसके इस इच्छा की पूर्ति नहीं हो सकती है फ़िर भी वह इच्छाओं के पीछे भागता रहता है।

उन्हीं इच्छाओं में से एक इच्छा है- 'काश! ,काश!मैं भविष्य देख पाता'

जबकि वह जानता है यदि ऐसा हुआ तो मनुष्य अकर्मण्यता, निराशावाद, आलस्य, प्रमाद आदि अनेकानेक नकारात्मक प्रवृत्तियों से घिर सकता है।फिर भी वह नासमझी बस कभी-कभी ऐसी इच्छा पाल लेता है।

चूँकि मनुष्य अतीत और भविष्य के बीच जीता है। वह अतीत से सीख लेकर के भविष्य के लिए सपने सँजोता है, कर्म करता है। यदि उसे भविष्य की जानकारी वर्तमान में ही हो गई तो वह अपने भविष्य के साथ-साथ वर्तमान को भी दूषित कर देगा।

क्योंकि 'काश! मैं अपना भविष्य देख पाता' में काश! शब्द ही हमें एक असफल संभावना की तरफ़ अग्रसर करता है। जब हम भविष्य में होने वाली संभावनाओं को वर्तमान में ही जान लेंगे तब हम अतीत और भविष्य की चक्की में अपने वर्तमान को पीसकर ख़त्म कर देंगे। और फ़िर हम जीवन पर्यंत अपने जीवन से शिकायत करते रहेंगे। हम दूसरे को दोष देते रहेंगे और वर्तमान में जो हमें खुशियांँ, आनंद, सुख जैसी सकारात्मक चीज़ें मिलने वाली थी उन्हें भी खो देंगे।

अतः हमें कभी भी इस काश! शब्द से मित्रता नहीं करना चाहिए। क्योंकि यह काश! शब्द हमारा मित्र कभी बन ही नहीं सकता। जब भी हमसे जुड़ेगा हमसे शत्रुता ही निभाएगा।

इस बात को मैं आपको एक छोटे से उदाहरण से बताती हूंँ- एक बच्चे की मांँ जो कि बीमार है। जिसे आने वाले 10 वर्षों में बच्चे का साथ छोड़कर दुनिया से विदा लेना है। अब अगर बच्चे को यह दस साल बाद उसकी मांँ उसे छोड़कर चली जाएगी वर्तमान में ही पता चल जाता है, तो बच्चे की क्या मनोदशा होगी? क्या बच्चा एक सामान्य सी ज़िंदगी जी पाएगा? क्या उसे जो कर्म करना चाहिए, उसको अपनी ज़िंदगी को लेकर जोश, उमंग, जज़्बा उल्लास, सकारात्मक प्रतिक्रियाएंँ उसके अंदर होनी चाहिए बचेंगी? क्या वो- वो सब कुछ जो उसे इन दस वर्षों में करना था, सुचारू रूप से कर सकेगा। शायद नहीं, पर क्यों ? आख़िर क्यों नहीं कर पाएगा? क्योंकि उसने अपना भविष्य पहले ही देख लिया। उसके जीवन का काश! उसका सब कुछ नष्ट कर दिया ।

और यह वर्तमान में भविष्य को देख लेना उसकी जिंदगी में एक ज़हर बन गया उसके अंदर की सारी सकारात्मकताएंँ नकारात्मकता में परिवर्तित हो गईं। वह अपने नित्य कर्मों को आसक्त सहित करने लगा। उसके हर कर्म में कहीं ना कहीं आसक्ति जुड़ गई। उसके जीवन से निर्लिप्त जैसा शब्द गायब हो गया। वह सदा लिप्त जीवन जीने लगा। परिणामत: शाश्वत सुख व शांति को उसने सदा के लिए खो दिया। जिन मुसीबतों,परेशानियों कष्टों, व्यवधानों का सामना उसे दस साल बाद करना था उनमें से ज़्यादातर का सामना वह दस साल पहले ही करने लगा। क्योंकि वह एक ऐसे इच्छाओं के जाल में फंँस गया जिससे बाहर आना नामुमकिन हो गया।

सीख- हमें जीवन में कभी भी काश! का दामन पड़कर नहीं चलना चाहिए। क्योंकि हमें जीवन में जो भी मिलता है वह हमारे कर्मों का फल होता है। शायद उसी में हमारा हित निहित होता है। अतः हम ईश्वर की हर मर्ज़ी को सहर्ष स्वीकार करें और अपने जीवन से काश! शब्द को सदा के लिए दूर कर दें।

साधना शाही, वाराणसी

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8 Comments

kashish

27-Feb-2024 02:42 PM

Awesome

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RISHITA

26-Feb-2024 04:33 PM

Amazing

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Gunjan Kamal

25-Feb-2024 10:32 PM

👌🏻👏🏻

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